maharashtra : बुजुर्ग महिला का दावा- 8 साल से आंख से दिखाई नहीं दे रहा था, कोरोना वैक्सीन लेने के बाद आने लगा नजर

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महाराष्ट्र के वाशिम जिले से एक बुजुर्ग महिला ने अजब दावा किया है. इस महिला के मुताबिक पिछले आठ वर्षों से आंखों में मोतियाबिंद (Cataract) होने की वजह से उसे नहीं दिखाया देता था लेकिन दस दिन पहले कोविड-19 वैक्सीन लेने के बाद उसे दिखाई देने लगा है. पहले इस महिला को अपने छोटे-मोटे कामों के लिए भी दूसरों की जरूरत होती थी. लेकिन अब महिला ने अपने काम खुद करना शुरू कर दिया है. इस बात की पुष्टि मथुरा के घरवालों और पड़ोसियों ने भी की हैं. वहीं डॉक्टरों ने महिला की आंख की रोशनी लौटने का वैक्सीन से कोई जुड़ाव होने से इनकार किया है. 

वाशिम के रिसोड इलाके के बेंदरवाड़ी में 73 साल की मथुरा बिडवे अपनी भांजी के साथ रहती हैं. मथुरा मूल रूप से जालना जिले के परतूर गांव की रहने वाली हैं. मथुरा के पति का देहांत होने के बाद वो दिहाड़ी मजदूरी करके अपना गुजारा करती थीं. लेकिन आठ साल पहले मथुरा को मोतियाबिंद की वजह से दिखना बिल्कुल बंद हो गया. जब मथुरा का जालना में कोई देखने वाला नहीं था तो भांजी उन्हें अपने साथ रिसोड ले आई. 

मथुरा की एक आंख का ऑपरेशन कराया गया लेकिन वह नाकाम रहा. दूसरी आंख में मोतियाबिंद का दायरा बढ़ जाने की वजह से पुतली का बड़ा सफेद घेरा हो गया. इसी हालत में मथुरा बीते आठ साल से रिसोड में रह रही थी. कोविड-19 वैक्सीनेशन के लिए अभियान तेज हुआ तो मथुरा को भी 26 जून को उनकी भांजी और नाती वैक्सीनेशन सेंटर ले गए. वहां उन्हे कोविशील्ड वैक्सीन की पहली डोज दी गई. 

वैक्सीन लगवाने के दूसरे दिन मथुरा ने भांजी और नाती को बताया कि उसकी आंख में कुछ उजाला दिख रहा है. परिवार वालों को भरोसा नहीं हुआ. लेकिन तीन दिन बाद मथुरा को 30-40 फीसदी आंख की रोशनी के साथ दिखना शुरू हो गया. अपने छोटे-मोटे काम खुद करना शुरू कर दिया. ये देखकर घरवाले और पड़ोसी हैरान रह गए. जल्दी ही ये बात पूरे शहर में फैल गई.  

वैक्सीन लेने के कुछ घंटे बाद मथुरा को बुखार भी हुआ था. इसके लिए मथुरा को पैरासिटामोल दी गई थी. आजतक ने महिला के दावे को लेकर महाराष्ट्र सरकार की ओर से बनाए गए इमरजेंसी टास्क फोर्स के मेंबर और सीनियर डॉक्टर डॉ तात्या लहाने से बात की. उनका कहना है कि ये महज इत्तेफाक है और इसका कोरोना वैक्सीनेशन से कोई संबंध नहीं है. 

शहर के सरकारी अस्पताल से डॉक्टरों की टीम भी मथुरा बिडवे के घर गई और चेकअप किया. इन डॉक्टरों का भी कहना है कि मेडिकली ये सिद्ध नहीं किया जा सकता कि वैक्सीन की वजह से ऐसा हुआ है. 

ऐसी संभावना हो सकती है कि मथुरा को मोतियाबिंद डिस्लोकेट होने से पहले नहीं दिखाई दे रहा हो, क्योंकि मोतियाबिंद का इलाज अगर समय रहते नहीं हुआ तो ऐसा मामला हजारों में से एक में होता है. 

नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ चित्रा सांबारे का इस महिला को लेकर कहना है कि अगर पूरी जांच और स्कैनिंग करने के बाद फिर से ऑपरेशन करके नया कृत्रिम लेंस लगाया जाए तो महिला को पूरी तरह नजर आ सकता है.

मोतियाबिंद आंखों का एक सामान्य रोग है. आम तौर पर ये 55 साल या इससे ज्यादा की उम्र में होता है. सर्जरी ही इसका एकमात्र इलाज़ है, जो सुरक्षित एवं आसान प्रक्रिया है. आंखों का लेंस आंख से विभिन्न दूरियों की वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है. समय के साथ लेंस अपनी पारदर्शिता खो देता है तथा अपारदर्शी हो जाता है, लेंस के धुंधलेपन को मोतियाबिंद कहा जाता है. रेटिना तक प्रकाश नहीं पहुँच पाता है एवं साफ दिखना बंद हो जाता है. नजर धुंधली होने के कारण मोतियाबिंद से पीड़ित लोगों को पढ़ने, नजर का काम करने, कार चलाने (खास तौर पर रात को) में समस्या आती है. 

इस ऑपरेशन में डॉक्टर द्वारा अपारदर्शी लेंस को हटाकर मरीज़ की आँख में प्राकृतिक लेंस के स्थान पर नया कृत्रिम लेंस फिट किया जाता है. कृत्रिम लेंसों को इंट्रा ऑक्युलर लेंस कहते हैं. ये  उसे उसी स्थान पर लगा दिया जाता है, जहां प्राकृतिक लेंस लगा होता है. 


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