मुंबई: मुंबई में बीएमसी पानी, फुटपाथ, शिक्षा, साफ-सफाई, शौचालय जैसी सुविधा उपलब्ध कराती है। पानी और साफ-सफाई मिलना नागरिकों का अधिकार है, लेकिन मुंबई में करीब 20 लाख लोगों को कानूनी तरीके से पानी नहीं मिलता। स्लम और सोसायटियों में पानी उपलब्ध कराते समय दोहरा रवैया अपनाया जाता है। इसीलिए बड़े पैमाने पर स्लम में रहने वाले नागरिकों को दूसरे तरीकों से पानी लेना पड़ता है। मुंबई को पानी आपूर्ति करने वाली झीलों में भरपूर पानी है, लेकिन समुद्र का पानी मीठा करने के लिए पैसा खर्च किया जा रहा है। यह आरोप पानी हक्क समिति के प्रवीण बोरकर ने लगाया है।
कालीना स्थित मुंबई यूनिवर्सिटी में आयोजित 'हमारी समस्या, हमारे जवाब' कार्यक्रम में मुंबई को लेकर अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी। चर्चा सत्र में विशेषज्ञों ने कहा कि विकास कार्यों के लिए नगरसेवकों को करोड़ों रुपये की निधि दी जाती है। किस नगरसेवक को किस कार्य के लिए कितनी निधि उपलब्ध कराई जा रही है, इसकी वार्षिक रिपोर्ट बीएमसी की वेबसाइट पर डाली जानी चाहिए।
हरियाली संस्था के सतीश अठाले ने कहा कि लोगों को पर्यावरण के महत्व को समझाने के लिए नागरिकों को कुछ रियायत दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि 1 टन गीले कचरे से 30 टन खाद पैदा की जा सकती है, जिसका उपयोग टेरेस पर गार्डन में किया जा सकता है। यह प्रयोग सफल हुआ है। बीएमसी को पर्यावरण की सुरक्षा के लिए लोगों को प्रोत्साहन देना चाहिए। शिक्षक भारती के जालिंदर सरोदे ने कहा कि बीएमसी का वार्षिक बजट 45 हजार करोड़ रुपये है, लेकिन शिक्षा के लिए सिर्फ 3000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया जाता है। बीएमसी स्कूलों की हालत दयनीय है, इसलिए बीएमसी को शिक्षा बजट में भारी वृद्धि करनी चाहिए।
कोरो इंडिया की मुमताज शेख ने कहा कि मुंबई महिलाओं के लिए सुरक्षित मानी जाती है। मुंबई महिलाओं के लिए रेलवे स्टेशनों,सार्वजनिक स्थानों पर बने महिला शौचालयों में पानी, साफ-सफाई और दरवाजों की समुचित सुविधा होनी चाहिए। बीएमसी द्वारा रजिस्टर्ड महिला बचत गुटों को फूड स्टॉल देकर उन्हें स्वावलंबी बनाने में भूमिका निभानी चाहिए।
.jpg)