पोला हमारे किसान राजा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है, लेकिन क्या आपने कभी ऐसा बैल पोला देखा है? जहाँ सर्वधर्म सम्भाव यानी हिंदू-मुसलमान और अन्य धर्म एक साथ आकर पोला पर्व को बड़े उत्साह से मनाते हैं? सभी बन्धु दरगाह पर गजानन महाराज की आरती के पश्चात अजान होने के बाद बैल की पूजा करके बैलपोला शुरू करते हैं। एक तरफ जहां सामाजिक एकता टूटती नजर आ रही है, वहीं दूसरी तरफ बुलढाणा जिले के मेहकर तालुका के बेलगांव में पोला त्योहार को एकता के त्योहार के रूप में मनाते हैं। यहां पोला त्यौहार की शुरूवात में श्री संत गजानन महाराज की आरती होती है, उसके बाद अजान और फिर रामशीद मिया दरगाह पर जहां गांव के सभी धार्मिक सभाएं बैल की पूजा करती हैं।रशीद मिया दरगाह क्षेत्र में ग्रामीण अपने बैलों को सजाकर लाते हैं इसे मंगलाष्टक कहा जाता है और सभी धर्मों के लोग एक दूसरे को शुभकामनाएं देकर पोला त्योहार मनाते हैं। बेलगांव में पोला त्योहार जो सामाजिक एकता का संदेश देता है, पोला के दिन सभी किसान अपने बैल को तैयार करते हैं और श्रीराम वानखेडे के बैल के पिछे बाकी बैल हनूमान मंदिर में लाते हैं यहां से बैंड बाजे के साथ सभी लोग रंशीद मिया की दरगाह पर झुकते हैं और आशीर्वाद लेते हैं और उसके बाद किसान अपने बैलों को गांव मे घुमाने ले जाते हैं। बता दे, यहां के गजानन महाराज मंदिर मे सुबह और शाम आरती करते है , आरती के वक्त गाव मे अजान नही होती और बुद्ध विहार मे उपासना भी नही होती. ठीक उसी तरह अजान के वक्त कोई भी मंदिर में आरती नही होती और बौद्ध उपासना के वक्त अजान तथा आरती नही होती हैं। न केवल राज्य में बल्कि देश में भी इस तरह की एकता कहीं नहीं दिखाई देती है। यहा सामाजिक एकता को महत्व दिया जाता है।
